यू दौरे -गुजिस्ता ने हर बार रुलाये दोस्त
मुस्कान के लम्हे भी उधार जुटाए दोस्त,
सूखे पत्ते की तरह देखे है फलक उड़कर
कभी रेत की धरती पर पतवार चलाये दोस्त,
है जीस्त मेरे हिस्से में कदरन कर्जा सी
किस्त मुफलिश कैसे इस बार चुकाए दोस्त,
हर बार शबे-वादा कुछ ऐसे गुजरी है
हर बार सहर अपना इन्तजार कराये दोस्त,
मै उन्ही पत्थरों में अपने पैर खो आया
जो रस्ते तुमने हमबार बताये दोस्त,
वो नादानी थी या इश्क का पागलपन
जब कीकरों में गुलाब खिलाये दोस्त,